Tuesday, January 23, 2018

विगत -गत
कल कोने में दुबके सहमे
डरे डरे कुछ  लम्हे पाए
मैंने जा कर के सहलाया
झूठ सही पर जा बहलाया
कि मेरे होते न यूं डरो
परिचय दे ले बात करो  

सुन कर पल ने ली अंगडाई
व्यंग बुझी  सी हँसी थमाई

बोला कलंक से  कलुषित हो
आत्मग्लानि से झुका हुआ था
विगत साल हूँ रुका हुआ था

उत्सुक था क्या नया करोगे
मुझे भेज जब नया धरोगे

बच्चियों के चीत्कार रुकेंगे  
जुगनु संग व्यभिचार रुकेंगे
कृषकों को कुछ आस मिलेगी
इतिहास को श्वास मिलेगी

देख लिया सब एक माह में
मोहग्रस्त था अब जाता हूँ
आत्मग्लानि से झुका हुआ था

विगत साल हूँ रुका हुआ था 

Monday, January 22, 2018

कभी बुझते हुए 
कभी बुझाते हुए 
कई तारे देखे
जी जलाते हुए।

अपने ही हाथ थे किस को दोष दें

न दुआंए ही हारीं 
न बददुआंए ही जीत पाईं 
 किस को दोष दें अपने ही हाथ थे
यही  कभी अनजान दर पर उठ गये 
कभी अपनी ही झोली खुल नहीं पायी
आ भी जाओ कि उजाले को आरोपमुक्त कर दें 
कि इंसानी खाल को खाल बनाए रखने का ज़िम्मा उठाए हैं 
आ भी जाओ कि अंधेरों की बात भी हमीं कर दे 
कि सींग पर दांत , दांत पर सींग इसी बीज ने उपजाए हैं

एक दिन उसकी शादी हो गयी

वो बहुत ज़हीन थी 
वो बहुत हसीन थी 
शायर थी ,थी चित्रकार 
गाती थी ,बजाती थी धूम मचाती थी 
जहाँ जाती थी ,बस छा जाती थी 
एक दिन उसकी शादी हो गयी
खत्म

खेद रह गया उन बाक़ी सपनों के लिए

खेद रह गया उन बाक़ी सपनों के लिए
जिन्हें देखने से पहले आँखें पथरा गयी 
अश्रु जो बिन बहे अतीत हो गए
पतवार जो कश्ती से पहले घबरा गयी

Tuesday, January 16, 2018

अब के कहीं बस सवाल हो जाए

हम आयें इधर से और वो उधर से 
ज़िन्दगी से कभी मुलाकात हो जाए 
जवाबों के बोझे ने बोझिल किया है
अब के कहीं बस सवाल हो जाए