विगत -गत
कल कोने में दुबके सहमे
डरे डरे कुछ लम्हे पाए
मैंने जा कर के सहलाया
झूठ सही पर जा बहलाया
कि मेरे होते न यूं डरो
परिचय दे ले बात करो
सुन कर पल ने ली
अंगडाई
व्यंग बुझी सी हँसी थमाई
बोला कलंक से कलुषित हो
आत्मग्लानि से झुका
हुआ था
विगत साल हूँ रुका हुआ
था
उत्सुक था क्या नया
करोगे
मुझे भेज जब नया
धरोगे
बच्चियों के चीत्कार
रुकेंगे
जुगनु संग व्यभिचार रुकेंगे
कृषकों को कुछ आस
मिलेगी
इतिहास को श्वास
मिलेगी
देख लिया सब एक माह
में
मोहग्रस्त था अब
जाता हूँ
आत्मग्लानि से झुका
हुआ था
विगत साल हूँ रुका हुआ
था